Aseere fauj-e-sitam qaidi-e-mehan Zainab
असीरे फौज-ए-सितम क़ैदी-ए-मेहन ज़ैनब है जिसका आयत-ए-ततहीर पैरहन ज़ैनब इमामतों की मददगार ख़स्तातन ज़ैनब है शान-ए-दीने ख़ुदा जान-ए-पंजतन ज़ैनब अली की जाए है अब्बास की बहन ज़ैनब असीरे फौज-ए-सितम क़ैदी-ए-मेहन ज़ैनब वो वक़्ते अस्र वो मक़्तल वो सोगवार फ़ज़ा नज़र के सामने भाई का कट रहा था गला तड़प रहा था बदन ज़ेरे तेग़ प्यासे का उधर थी मेहव-ए-फुग़ाँ शाह की बहन ज़ैनब असीरे फौज-ए-सितम क़ैदी-ए-मेहन ज़ैनब छुटा है भाई भी और मर चुके हैं बच्चे भी रिदा भी सर पा नहीं जल चुके हैं ख़ैमें भी जले हैं क़ल्ब भी दामन भी और कुर्ते भी चली है छोड़ के भाई को बेकफ़न ज़ैनब असीरे फौज-ए-सितम क़ैदी-ए-मेहन ज़ैनब जवाँ का क़त्ल तो ख़ुद उसके दिल पा भाला था था ग़म अज़ीम तो शब्बीर को संभाला था क़दम जो ख़ैमें से पहले पहल निकाला था सहारा देने को आई थी पुरमेहन ज़ैनब असीरे फौज-ए-सितम क़ैदी-ए-मेहन ज़ैनब दयार-ए-कूफ़ा में तक़रीर से जिहाद किया दिया है शाम के दरबार में कभी ख़ुत्बा कभी ख़ामोशी से मज़लूमियत को नश्र किया कभी अली कभी ज़हरा कभी हसन ज़ैनब असीरे फौज-ए-सितम क़ैदी-ए-मेहन ज़ैनब ख़याल कुन्बे का था रो सकी न जी भर के निकलने पाए